Thursday, September 20, 2012

चाही एहन wife यौ !!!

लम्बा जिनकर हाइट यौ
जिन्स जिनकर टाइट यौ
मुखरा जिनकर ब्राइट यौ
वेट जिनकर लाइट यौ
कनिक्बो हुवया ओ शान्त यौ
चाही एहन Wife यौ !!

सडक पर सब कहा wow.. यौ
भिडमे सब कियो कहा साइड यौ ,साइड यौ
नेपालके पैदास यौ
सासु के सेवा जिनकर ख्वाइस यौ
चाही एहन wife यौ !!

पडोसी स बात कर काल छुरा रहा हुनकर हात यौ
हमरा दुनु मे कहियो नै हुवा फाइट यौ
मिल्लाके बाद मन हमर हुवा हर्ष यौ
हे भगबान आहाके अर्चना हुवा हुनकर लाइफ यौ
इ कबिता सब कियो पइरह क कहा राहुल आंहा राइट यौ
चाही एहन wife यौ !!

कास एहन इच्छा हुवा ०.०००१ प्रतिशत राईट यौ
अगर हुवा एहन अपन वाइफ यौ त एकदम हसिन हुवा अपन लाइफ यौ
सब कियो के इहा फर्माइस यौ
भगबानो के अज्माइस यौ
खुदा के सोफ्टवेयर मे नै BUG के गुन्जाइस यौ
ह्यात कतौ त येहन पैदास यौ
अपना चाही एहन WIFE यौ !!
-राहुल झा

Tuesday, September 18, 2012

चौरचनक् अर्थ

आइ आसिन ३ गते तदनुसार 19 सितंबर कए मिथिलाक लोकपावनि चौरचन (चौठ चान) अछि। सामान्यरत: एहि दिन भारत वर्ष मे चंद्रमा क दर्शन नहि कैल जाइत अछि। कहल जाइत अछि जे एहि दिन चंद्रमाक दर्शन स अनेरे कलंक लगैत अछि। मुदा मिथिला मे चद्रमा देखबाक प्रचलन अछि। हाथ मे कोनो फल लेने लोक चान क बाट तकैत अछि आ ओकर दर्शनक बाद अन्नअ ग्रहण करैत अछि। एकर पाछु दू तीनटा लोक कथा अछि। कियो एहि दिन कए अहल्याा स जोडैत अछि त किनको कहब अछि जे एहि दिन मिथिला नरेश कलंक स मुक्तछ भेल छथि। कारण जे हो मुदा मिथिला मे एहि दिन चान देखबाक परंपरा पुरान अछि। प्रस्तुKत अछि एहि पावनि पर राहुल झा अक इ आलेख। समस्त विज्ञजन केँ विदित अछि जे समग्र विश्वे मे भारत ज्ञान विज्ञान सँ महान तथा जगत्‌ गुरु कऽ उपाधि सँ मण्डित अछि । एतवे टा नहि भारत पूर्व काल मे “सोनाक चिड़िया” मानल जाइत छल एवं ब्रह्माण्डक परम शक्तिर छल । भूलोकक कोन कथा अन्तरिक्ष लोक मे एतौका राजा शान्ति स्थापित करऽ लेल अपन भुज शक्तिलक उपयोग करैत छलाह । एकर साक्ष्य अपन पौराणिक कथा ऐतिह्‌य प्रमाणक रुप मे स्थापित अछि । हमर पूर्वज जे आई ऋषि महर्षि नाम सँ जानल जायत छथि हुनक अनुसंधानपरक वेदान्त (उपनिषद्‍) एखनो अकाट्यो अछि । हुनक कहब छनि काल (समय) एक अछि, अखण्ड अछि, व्यापक (सब ठाम व्याप्त) अछि । महाकवि कालिदास अभिज्ञान शकुन्तलाक मंगलाचरण मे “ये द्वे कालं विधतः” एहि वाक्य द्वारा ऋषि मत केँ स्थापित करैत छथि । जकर भाव अछि व्यवहारिक जगत्‌ मे समयक विभाग सूर्य आओर चन्द्रमा सँ होइछ । ‘प्रश्नोपनिषद्‍’ मे ऋषिक मतानुसार परम सूक्ष्म तत्त्व “आत्मा” सूर्य छथि तथा सूक्ष्म गन्धादि स्थूल पृथ्वी आदि प्रकृति चन्द्र छथि । एहि दूनूक संयोग सँ जड़ चेतन केँ उत्पत्ति पालन आओर संहार होइछ । आत्यिमिक बौद्धिक उन्नजति हेतु सूर्यक उपासना कैल जाइछ । जाहि सँ ज्ञान प्राप्त होइछ । ज्ञान छोट ओ पैघ नहि होइछ अपितु सब काल मे समान रहैछ एवं सतत ओ पूर्णताक बोध करवैछ । मुक्तिइक साधन ज्ञान, आओर मुक्तओ पुरुष केँ साध्यो ज्ञाने अछि । सूर्य सदा सर्वदा एक समान रहैछ । ठीक एकरे विपरीत चन्द्र घटैत बढ़ैत रहैछ । ओ एक कलाक वृद्धि करैत शुक्ल पक्ष मे पूर्ण आओर एक-एक कलाक ह्रास करैत कृष्ण पक्ष मे विलीन भऽ जाय्त छाथि । सम्पत्सर रुप (समय) जे परमेश्व र जिनक प्रकृति रुप जे प्रतीक चन्द्र हुनक शुक्ल पक्ष रुप जे विभाग ओ प्राण कहवैछ प्राणक अर्थ भोक्ताप । कृष्ण पक्ष भोग्य (क्षरण शील वस्तु) । विश्वेक समस्त ज्योतिषी लोकनि जातकक जन्मपत्री मे सूर्य आओर चन्द्र केँ वलावल केँ अनुसार जातक केर आत्मबल तथा धनधान्य समृद्धिक विचार करैत छथिन्ह । वैज्ञानिक लोकनि अपना शोध मे पओलैन जे चन्द्रमाक पूर्णता आओर ह्रास्क प्रभाव विक्षिप्त (पागल) क विशिष्टता पर पड़ैछ । भारतीय दार्शनिक मनीषी “कोकं कस्त्वं कुत आयातः, का मे जनजी को तात:” अर्थात्‌ हम के छी, अहाँ के छी हमर माता के छथि तथा हमर पिता के छथि इत्यादि प्रश्नक उत्तर मे प्रत्यक्ष सूर्य के पिता (पुरुष) आओर चन्द्रमा के माता (स्त्री) क कल्पना कऽ अनवस्था दोष सं बचैत छथि । अपना देश मे खास कऽ हिन्दू समाज मे जे अवतारवादक कल्पना अछि ताहि मे सूर्य आओर चन्द्रक पूर्णावतार मे वर्णन व्यास्क पिता महर्षि पराशर अपन प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘वृद्ध पराशर’ मे करैत छथि । “रामोऽवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः” सृ. क्र. २६ अर्थात्‌ सूर्य राम रुप मे आओर चन्द्र कृष्ण रुप मे अवतार ग्रहण केलन्हि । ई दुनू युग पुरुष भारतीय संस्कृति-सभ्यता, आचार-विचार तथा जीवन दर्शनक मेरुद्ण्ड छथि आदर्श छथि । पौराणिक ग्रन्थ तथा काव्य ग्रन्थ केँ मान्य नायक छथि । कवि, कोविद, आलोचक, सभ्य विद्धत्‌ समाजक आदर्श छथि । सामान्यजन हुनका चरित केँ अपना जीवन मे उतारि ऐहिक जीवन के सुखी कऽ परलोक केँ सुन्दर बनाबऽ लेल प्रयत्न्शील होईत छथि । एहि संसार मे दू प्रकारक मनुष्य वास करै छथि । एकटा प्रवृत्ति मार्गी (प्रेय मार्गी)- गृहस्थ दोसर निवृत्ति मार्गी योगी, सन्यासी । प्रवृत्ति मार्गी-गृहस्थ काञ्चन काया कामिनी चन्द्रमुखी प्रिया धर्मपत्नीय सँ घर मे स्वर्ग सुख सँ उत्तम सुखक अनुभव करै छथि । ओहि मे कतहु बाधा होइत छनि तँ नरको सँ बदतर दुःख केँ अनुभव करै छथि । कर्मवादक सिद्धान्तक अनुसार सुख-दुःख सुकर्मक फल अछि ई भारतीय कर्मवादक सिद्धान्त विश्व क विद्धान स्वीकार करैत छथि । तकरा सँ छुटकाराक उपाय पूर्वज ऋषि-मुनि सुकर्म (पूजा-पाठ) भक्तिम आओर ज्ञान सँ सम्वलित भऽ कऽ तदनुसार आचरणक आदेश करैत छथिन्ह । हम जे काज नहि केलहुँ ओकरो लेल यदि समाज हमरा दोष दिए, प्रत्यक्ष वा परोक्ष मे हमर निन्दा करय एहि दोष “लोक लाक्षना” क निवारण हेतु भादो शुक्ल पक्षक चतुर्थी चन्द्र के आओर ओहि काल मे गणेशक पूजाक उपदेश अछि । हिन्दू समाज मे श्री कृष्ण पूर्णावतार परम ब्रह्म परमेश्व्र मानल छथि । महर्षि पराशर हुनका चन्द्रसँ अवतीर्ण मानैत छथिन्ह । हुनके सँ सम्बन्धित स्कन्दपुराण मे चन्द्रोपाख्यान शीर्षक सँ कथा वर्णित अछि जे निम्नलिखित अछि । नन्दिकेश्वमर सनत्कुमार सँ कहैत छथिन्ह हे सनत कुमार ! यदि अहाँ अपन शुभक कामना करैत छी तऽ एकाग्रचित सँ चन्द्रोपाख्यान सुनू । पुरुष होथि वा नारी ओ भाद्र शुक्ल चतुर्थीक चन्द्र पूजा करथि । ताहि सँ हुनका मिथ्या कलंक तथा सब प्रकार केँ विघ्नक नाश हेतैन्ह । सनत्कुमार पुछलिन्ह हे ऋषिवर ! ई व्रत कोना पृथ्वी पर आएल से कहु । नन्दकेश्वार बजलाह-ई व्रत सर्व प्रथम जगत केर नाथ श्री कृष्ण पृथ्वी पर कैलाह । सनत्कुमार केँ आश्च र्य भेलैन्ह षड गुण ऐश्व र्य सं सम्पन्नब सोलहो कला सँ पूर, सृष्टिक कर्त्ता धर्त्ता, ओ केना लोकनिन्दाक पात्र भेलाह । नन्दीकेश्वशर कहैत छथिन्ह-हे सनत्कुमार । बलराम आओर कृष्ण वसुदेव क पुत्र भऽ पृथ्वी पर वास केलाह । ओ जरासन्धक भय सँ द्वारिका गेलाह ओतऽ विश्वभकर्मा द्वारा अपन स्त्रीक लेल सोलह हजार तथा यादव सब केँ लेल छप्पन करोड़ घर केँ निर्माण कऽ वास केलाह । ओहि द्वारिका मे उग्र नाम केर यादव केँ दूटा बेटा छलैन्ह सतजित आओर प्रसेन । सतजित समुद्र तट पर जा अनन्य भक्तिक सँ सूर्यक घोर तपस्या कऽ हुनका प्रसन्नद केलाह । प्रसन्नह सूर्य प्रगट भऽ वरदान माँगूऽ कहलथिन्ह सतजित हुनका सँ स्यमन्तक मणिक याचना कयलन्हि । सूर्य मणि दैत कहलथिन्ह हे सतजित ! एकरा पवित्रता पूर्वक धारण करव, अन्यथा अनिष्ट होएत । सतजित ओ मणि लऽ नगर मे प्रवेश करैत विचारऽ लगलाह ई मणि देखि कृष्ण मांगि नहि लेथि । ओ ई मणि अपन भाई प्रसेन के देलथिन्ह । एक दिन प्रंसेन श्री कृष्ण के संग शिकार खेलऽ लेल जंगल गेलाह । जंगल मे ओ पछुआ गेलाह । सिंह हुनका मारि मणि लऽ क चलल तऽ ओकरा जाम्बवान्‌ भालू मारि देलथिन्ह । जाम्बवान्‌ ओ लऽ अपना वील मे प्रवेश कऽ खेलऽ लेल अपना पुत्र केऽ देलथिन्ह । एम्हर कृष्ण अपना संगी साथीक संग द्वारिका ऐलाह । ओहि समूहक लोक सब प्रसेन केँ नहि देखि बाजय लगलाह जे ई पापी कृष्ण मणिक लोभ सँ प्रसेन केँ मारि देलाह । एहि मिथ्या कलंक सँ कृष्ण व्यथित भऽ चुप्पहि प्रसेनक खोज मे जंगल गेलाह । ओतऽ देखलाह प्रदेन मरल छथि । आगू गेलाह तऽ देखलाह एकटा सिंह मरल अछि आगू गेलाह उत्तर एकटा वील देखलाह । ओहि वील मे प्रवेश केलाह । ओ वील अन्धकारमय छलैक । ओकर दूरी १०० योजन यानि ४०० मील छल । कृष्ण अपना तेज सँ अन्धकार के नाश कऽ जखन अंतिम स्थान पर पहुँचलाह तऽ देखैत छथि खूब मजबूत नीक खूब सुन्दर भवन अछि । ओहि मे खूब सुन्दर पालना पर एकटा बच्चा के दायि झुला रहल छैक बच्चा क आँखिक सामने ओ मणि लटकल छैक दायि गवैत छैक- सिंहः प्रसेन भयधीत, सिंहो जाम्बवता हतः । सुकुमारक ! मा रोदीहि, तब ह्‌येषः स्यमन्तकः ॥ अर्थात्‌ सिंह प्रसेन केँ मारलाह, सिंह जाम्बवान्‌ सँ मारल गेल, ओ बौआ ! जूनि कानू अहींक ई स्यमन्तक मणि अछि । तखनेहि एक अपूर्व सुन्दरी विधाताक अनुपम सृष्टि युवती ओतऽ ऐलीह । ओ कृष्ण केँ देखि काम-ज्वर सँ व्याकुल भऽ गेलीह । ओ बजलीह-हे कमल नेत्र ! ई मणि अहाँ लियऽ आओर तुरत भागि जाउ । जा धरि हमर पिता जाम्बवान्‌ सुतल छथि । श्री कृष्ण प्रसन्न् भऽ शंख बजा देलथिन्ह । जाम्बवान्‌ उठैत्मात्र युद्ध कर लगलाह । हुनका दुनुक भयंकर बाहु युद्ध २१ दिन तक चलैत रहलन्हि । एम्हर द्वारिका वासी सात दिन धरि कृष्णक प्रतीक्षा कऽ हुनक प्रेतक्रिया सेहो देलथिन्ह । बाइसम दिन जाम्बवान्‌ ई निश्चिित कऽ कि ई मानव नहि भऽ सकैत छथि । ई अवश्य परमेश्वहर छथि । ओ युद्ध छोरि हुनक प्रार्थना केलथिन्ह अ अपन कन्या जाम्बवती के अर्पण कऽ देलथिन्ह । भगवान श्री कृश्न मणि लऽ कऽ जाम्ब्वतीक स्म्ग सभा भवन मे आइव जनताक समक्ष सत्जीत के सादर समर्पित कैलाह । सतजीत प्रसन्नश भऽ अपन पुत्री सत्यभामा कृष्ण केँ सेवा लेल अर्पण कऽ देलथिन्ह । किछुए दिन मे दुरात्मा शतधन्बा नामक एकटा यादव सत्ताजित केँ मारि ओ मणि लऽ लेलक । सत्यभामा सँ ई समाचार सूनि कृष्ण बलराम केँ कहलथिन्ह-हे भ्राता श्री ! ई मणि हमर योग्य अछि । एकर शतधन्वान लेऽ लेलक । ओकरा पकरु । शतधन्वा ई सूनि ओ मणि अक्रूर कें दऽ देलथिन्ह आओर रथ पर चढ़ि दक्षिण दिशा मे भऽ गेलाह । कृष्ण-बलराम १०० योजन धरि ओकर पांछा मारलाह । ओकरा संग मे मणि नहि देखि बलराम कृष्ण केँ फटकारऽ लगलाह, “हे कपटी कृष्ण ! अहाँ लोभी छी ।” कृष्ण केँ लाखों शपथ खेलोपरान्त ओ शान्त नहि भेलाह तथा विदर्भ देश चलि गेलाह । कृष्ण धूरि केँ जहन द्वारिका एलाह तँ लोक सभ फेर कलंक देबऽ लगलैन्ह । ई कृष्ण मणिक लोभ सँ बलराम एहन शुद्ध भाय के फेज छल द्वारिका सँ बाहर कऽ देलाह । अहि मिथ्या कलंक सँ कृष्ण संतप्त रहऽ लगलाह । अहि बीच नारद (ओहि समयक पत्रकार) त्रिभुवन मे घुमैत कृष्ण सँ मिलक लेल ऐलथिन्ह । चिन्तातुर उदास कृष्ण केँ देखि पुछथिन्ह “हे देवेश ! किएक उदास छी ?” कृष्ण कहलथिन्ह, ” हे नारद ! हम वेरि वेरि मिथ्यापवाद सँ पीड़ित भऽ रहल छी ।” नारद कहलथिन्ह, “हे देवेश ! अहाँ निश्चिनते भादो मासक शुक्ल चतुर्थीक चन्द्र देखने होएव तेँ अपने केँ बेरिबेरि मिथ्या कलंक लगैछ । श्री कृष्ण नारद सँ पूछलथिन्ह, “चन्द्र दर्शन सँ किएक ई दोष लगै छैक । नारद जी कहलथिन्ह, “जे अति प्राचीन काल मे चन्द्रमा गणेश जी सँ अभिशप्त भेलाह, अहाँक जे देखताह हुनको मिथ्या कलंक लगतैन्ह । कृष्ण पूछलथिन्ह, “हे मुनिवर ! गणेश जी किऐक चन्द्रमा केँ शाप देलथिन्ह ।” नारद जी कहलथिन्ह, “हे यदुनन्दन ! एक वेरि ब्रह्मा, विष्णु आओर महेश पत्नीक रुप मे अष्ट सिद्धि आओर नवनिधि के गनेश कें अर्पण कऽ प्रार्थना केयथिन्ह । गनेश प्रसन्न भऽ हुनका तीनू कें सृजन, पालन आओर संहार कार्य निर्विघ्न करु ई आशीर्वाद देलथिन्ह । ताहि काल मे सत्य लोक सँ चन्द्रमा धीरे-धीरे नीचाँ आबि अपन सौन्द्र्य मद सँ चूर भऽ गजवदन कें उपहाल केयथिन्ह । गणेश क्रुद्ध भऽ हुनका शाप देलथिन्ह, – “हे चन्द्र ! अहाँ अपन सुन्दरता सँ नितरा रहल छी । आई सँ जे अहाँ केँ देखताह, हुनका मिथ्या कलंक लगतैन्ह । चन्द्रमा कठोर शाप सँ मलीन भऽ जल मे प्रवेश कऽ गेलाह । देवता लोकनि मे हाहाकार भऽ गेल । ओ सब ब्रह्माक पास गेलथिन्ह । ब्रह्मा कहलथिन्ह अहाँ सब गणेशेक जा केँ विनति करु, उएह उपय वतौताह । सव देवता पूछलन्हि-गणेशक दर्शन कोना होयत । ब्रह्मा वजलाह चतुर्थी तिथि केँ गणेश जी के पूजा करु । सब देवता चन्द्रमा सँ कहलथिन्ह । चन्द्रमा चतुर्थीक गणेश पुजा केलाह । गणेश वाल रुप मे प्रकट भऽ दर्शन देलथिन्ह आओर कहलथिन्ह – चन्द्रमा हम प्रसन्नथ छी वरदान माँगू । चन्द्रमा प्रणाम करैत कहलथिन्ह हे सिद्धि विनायक हम शाप मुक्तर होई, पाप मुक्तह होई, सभ हमर दर्शन करैथ । गनेश थ बहलाघ हमर शाप व्यर्थ नहि जायत किन्तु शुक्ल पक्ष मे प्रथम उदित अहाँक दर्शन आओर नमन शुभकर रहत तथा भादोक शुक्ल पक्ष मे चतुर्थीक जे अहाँक दर्शन करताह हुनका लोक लान्छना लगतैह । किन्तु यदि ओ सिंहः प्रसेन भवधीत इत्यादि मन्त्र केँ पढ़ि दर्शन करताह तथा हमर पूजा करताह हुनका ओ दोष नहि लगतैन्ह । श्री कृष्ण नारद सँ प्रेरित भऽ एहिव्रतकेँ अनुष्ठान केलाह । तहन ओ लोक कलंक सँ मुक्तक भेलाह । एहि चौठ तिथि आओर चौठ चन्द्र केँ जनमानस पर एहन प्रभाव पड़ल जे आइयो लोक चौठ तिथि केँ किछु नहि करऽ चाहैत छथि । कवि समाजो अपना काव्य मे चौठक चन्द्रमा नीक रुप मे वर्णन नहि करैत छथि । कवि शिरोमणि तुलसी मानसक सुन्दर काण्ड मे मन्दोदरी-रावण संवाद मे मन्दोदरीक मुख सँ अपन उदगार व्यक्तै करैत छथि – “तजऊ चौथि के चन्द कि नाई” हे रावण । अहाँ सीता केँ चौठक चन्द्र जकाँ त्याग कऽ दियहु । नहि तो लोक निंदा करवैत अहाँक नाश कऽ देतीह । एतऽ ध्यान देवऽक बात इ अछि जे जाहि चन्द्र केँ हम सब आकाश मे घटैत बढ़ैत देखति छी ओ पुरुष रुप मे एक उत्तम दर्शन भाव लेने अछि । जे एहि लेखक विषय नहि अछि । हमर ऋषि मुनि आओर सभ्य समाजक ई ध्येय अछि, मानव जीवन सुखमय हो आओर हर्ष उल्लास मे हुनक जीवन व्यतीत होन्हि । एहि हेतु अनेक लोक पावनि अपनौलन्हि, जाहि मे आवाल वृद्ध प्रसन्नि भवऽ केँ परिवार समाज राष्ट्र आओर विश्व एक आनन्द रुपी सूत्र मे पीरो अब फल जेकाँ रहथि ।

Saturday, March 10, 2012

हमर सजनी ll

सजनी यै हमर सजनी
सुनु मन के हमर बात
समय भेटल एहेन जहन् केलौ ने आहाके याद
एना एसएमएस नै करु एना इमेल नै करु यै
सजनी यै हमर सजनी..

कते आस स अपन निक क भविष्य लेल बापक सम्पति सल्टेलौ
आबी विदेश परदेशक पाइनमे अपन समय बितेलहुँ
अपन मन के बान्हि हम रखलहुँ.... यै - २ पायब सिनेह अहीं के
कहियो भटकल तन के समेटलहुँ... बाँटब देह अहीं से
सजनी यै हमर सजनी.....

होली हो या हो दीवाली मीत अहीं मोर मन के
छै नै कोनो क्षण बिसरी हमहुँ मीत अहीं मोर मन के
५वर्ष के भीजा छै से बुझल छै दुनियां के
लाखों खरच कय हम छी आयल काज करय विदेशमें
आब कहु कि छोड़ि इ सभटा... प्रीतक भोग ले भागी...
आबि गाम अहुँ संग हम कि खाली पेट अनुरागी...
सजनी... यै हमर सजनी....

नै यौ प्रियतम, बुझय छी सभ, कसमश अहुँ के मनके
हमर इ नहि छल सजना भागू सभ अहाँ छोड़िके
यदा-कदा दु प्रेमक बोली कान में दियौ कैसके
फोनहि पर सँ प्रेमालापके तीर सँ मारू जकैड़के
सजना... यौ सजना....
सजनी यै हमर सजनी ...
लेखक -

Friday, November 11, 2011

" मा "

 मा के ओ आँचर बहुत याद अबैया
ओ पूरा दुनिया यई हमर, ओई में नुका के बहुत मन करैया
अखनो कहियो जखन छू लै या माथ के हमर
सचे कहै छि यौ मा हमर बचपन चैल अबै या

सुनै छि जखन कूनो गीत मिठास भरल
तोहर गुणगुनेनाइ याद अबै या
ओ लोरी के कम आवाज़
जे गुन्जैत रहै छल
हमारा सुइत गेला के बादो

अईछ इ दुनिया के अनमोल ओ गीत
जकरा कहियो नै पलक ओs कारी राइत जित
मन कते तरसै या मा
ओ मीठ बोली के लेल
ओ सब बात सब शब्द
जे चुनला तू हमरा लेल

किछ नै छल हमरा लग तैयो कते खुस छलौ हम
आई सब किछ होइतो किया नै मुस्कुराई छि हम
ओ आँचर मा के बहुत याद अबै या
आई धरफर में जरा लेलौं हा ठोर अपन
तोहर ओ फुइक फुइक क खुवेनाई याद अबै या
आई त चैलते चैलते चिख्लौ हा कर अखन
तोहर ओ खिसियाक बैसेनाई याद अबै या

बिना मुह धोने चैल देलौ इ दुनिया के दौर में
ओ मुह धो कs भगबान के याद केनाई याद अबै या
ओ आँचर अइछ पूरा दुनिया सs बरका
ओ हमरा बहुत सोभै छल
मा तोहर ओ आँचर बहुत याद अबै या ...........

मा सs बरका कुनो रिश्ता नै इ संसार में 
                                   - -राहुल झा

Friday, March 25, 2011

बौवा करबा की ?

देशक हाल बेहाल छै बौवा करबा की ? 
नेता बनल बैमान बौवा करबा की ?
जीत पठाओल बौवा जकरा संसदमे
वाएह बनल गद्दार बौवा करबा की ?
देशक हाल बेहाल छै बौवा करबा की ?
नङ्गरी सुटका बैसल सभासद संसदमे
बनि बडका बुधियार बौवा करबा की ?
कएने छै अगोरिया एखनो पद्देके लेल
बेच अपन ईमान बौवा करबा की ?
देशक हाल बेहाल छै बौवा करबा की ?

लेस रहल छै जाति धरम आ भाषा भेषक
कोने कोन पसाही बौवा करबा की ?
कना रहल छै जनता के हक्कन
लगा द्वन्द अगराही बौवा करबा की ?
देशक हाल बेहाल छै बौवा करबा की ?
जरा रहल छै स्वार्थक खातिर
टोल टोल आ गाम बौवा करबा की ?
नै छै धधकैत देशक चिन्ता
छै कुर्सी पर ध्यान बौवा करबा की ?
देशक हाल बेहाल छै बौवा करबा की ?

रत्तमय धर्तीक चितकार कोनाक सुनत के
मुनि बैसल सब कान बौवा करबा की ?
सिंचल जकरा सोनित भैर भैर
सएह बनल आइ आन बौवा करबा की ?
देशक हाल बेहाल छै बौवा करबा की ?
बन्दी बना अधिकार जे बैसल
नेता शिर्ष महान बौवा करबा की ?


खोलि कोना स्वतन्त्रता बांटत
बटनाहर सैतान बौवा करबा की ?
देशक हाल बेहाल छै बौवा करबा की ?
कहि रहल छै बुत्ता छ त ला अधिकार
शासन हमर पुस्तैनि तु करबा की ?
मोछ पिजा उठोने झंडा जिद्दक लेल
लरबा लेल ललकारै बौव करबा की ?
लरबा लेल ललकारै बौव करबा की ?
देशक हाल बेहाल छै बौवा करबा की ?

                                                           -प्रकाश प्रेमी ,जनकपुर

Tuesday, March 22, 2011

शिक्षा

शिक्षा अईछ अनमोल रतन ।
किया करै छि एकरा पतन ।।
शिक्षा स अंधकार हटाऊ।
पैढ़ लिख क देश बनाऊ ।।

छोटका बरका सब कियो पढू ।
सब कियो मिल क देश जगाबू ।।
करू शिक्षा के एक अभियान ।
जत बने सब बिद्वान ।।

बिद्वान बैन क देश चलाऊ।
तब देखू शिक्षा के काम ।।
हेतई अपन देश महान ।
सब कियो लेती अपना सबहक नाम ।।


शिक्षा अईछ अनमोल रतन।
किया करै छि एकर पतन ।।

चुनीया मुनिया स्कूल जो ।
पैढ़ लिख क देश बनो ।।
तब चल्तौ बेटियों के नाम ।
तहां भेट तौ देश में सम्मान ।।

देश बासी सब कियो जागु।
शिक्षा के आबाज उठाबू ।।
देश में अईछ शिक्षा के काम ।
तहन बनत देश महान ।।

बौवा बुची बुढ जवान ।
सब के देत शिक्षा मात्र काम ।।
दुनिया में एक एहन मात्र धन ।
जाकर देख करे कियो नै तंग ।।

शिक्षा अईछ अनमोल रतन ।
किया करै छि एकर पतन ।।
                                       -राहुल झा

Friday, March 18, 2011

बुरा ना मानों होली है

होली के बोली में इ संग द कs ।
जे नै चा है या तकरो रंग द कs ।।
भौजी सब के तंग कsक ।
कहै छि होली है बुरा ना मानों होली है ।।

जिंदगी में पि क दंग भ कs ।
एक आपस में सब कियो संग भ कs ।।
बौवा बुची सब के दंग कsक ।
पापा म्मी सब स रंग ल कs ।।
कहै छि होली है बुरा ना मानों होली है ।।

रंग  के जंग में मतंग भ कs ।
भाँग क गोला स दंग भ कs ।।
अबीर आ रंग स तंग भ कs. ।
जोगीरा आ होली के गीत में मतंग भ कs ।।
कहै छि होली है बुरा ना मानों होली है ।।

गाम के ग़ली सब में होरी गाइब कsक ।
छरा मरा सब जोगीरा गाइब कs ।।
रंग खेल क मतंग भ कs ।
अपने नसा में मतंग भ कs ।।
कहै छि होली है बुरा ना मानों होली है ।

                                  राहुल झा